देवी के विविध रूप
देवी के विविध रूप
पूजते हम देवी को दिन-रात
देते हैं उनको असीम सम्मान
न समझें उनका सच्चा स्वरूप
क्या है देवी का असली रूप।
धूप में तोड़ती पत्थर जो मजदूरनी
महल बनाती है सहकर कड़ी धूप
कहती ना मुख से कुछ भी मगर
सहिष्णुता दिखाए देवी का रूप।
देखती हूँ जब मदर टेरेसा का चित्र
समाज सेवा कर सबको बनाया पुत्र
याद आती है जब उनकी दिव्य सूरत
लगती हैं ममतामयी देवी की मूरत।
याद आता है पन्ना धाय का त्याग
प्राण प्रिय पुत्र का किया परित्याग
स्वामिभक्ति में की हर सीमा पार
लगती त्यागमयी देवी का अवतार।
देखती हूँ जब कभी किसान की बेटी
माथे पर चमकते जिसके श्वेद कण
अन्न उपजाकर बनती है जो जनसेवी
याद मुझको आती तब अन्नपूर्णा देवी।
याद आती है जब झांसी की रानी
ओजपूर्ण थी जिसकी अद्भुत बानी
अंग्रेजों से युद्ध किया बन मतवाली
मानो उतरी हो धरती पर माँ काली।
हर बेटी जो बने पिता का गुरुर
हर बहन जो बढ़ाये भाई का नूर
हर माँ जो है ईश्वर का प्रतिरूप
मेरे लिए वे हैं देवी का असली रूप।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
नोएडा, उत्तर प्रदेश
Sudhanshu pabdey
30-Jan-2022 10:45 AM
Very beautiful 👌
Reply
Swati chourasia
30-Jan-2022 08:16 AM
वाह बहुत ही सुंदर रचना 👌
Reply
Zakirhusain Abbas Chougule
29-Jan-2022 11:30 PM
Very nice
Reply